• सिविल सर्जन के वक्तव्य से परिजनों के आरोपों को मिला बल, पर नहीं हुई अब तक कार्रवाई
• निजी अस्पतालों में कंपाउंडर करते हैं ऑपरेशन, मरीजों की मौत व हालत बिगड़ने पर झाड़ लेते हैं पल्ला
• निजी अस्पतालों में मरीज की मौत होने पर स्वास्थ्य विभाग की भूमिका रहती है संदिग्ध
समस्तीपुर, जिले में निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम्स की लापरवाही अब जानलेवा साबित हो रही है। मरीजों को इलाज के नाम पर लूटने वाले और उनके जीवन के साथ खिलवाड़ करने वाले इन संस्थानों पर प्रशासन की ढील का नतीजा यह है कि ये अस्पताल न तो किसी मानक का पालन कर रहे हैं और न ही स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई ठोस कार्रवाई हो रही है।
जबकि अब तक ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें इन निजी अस्पतालों की लापरवाही के कारण मरीज असमय काल के गाल में समा चुके हैं।
वहीं, हर घटना के बाद सिविल सर्जन डॉ एसके चौधरी ऐसे स्वास्थ्य संस्थानों पर कार्रवाई करने की बात तो कहते हैं, लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं होती है।
ऐसे संस्थानों पर प्रशासन को खुद संज्ञान लेकर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। ताकि मरीजों के गलत इलाज व हो रहे उनके आर्थिक दोहन पर लगाम लग सके।
ताजा मामला विभूतिपुर थाना क्षेत्र के शिवनाथपुर वार्ड नंबर चार के मरीज सत्यनारायण पासवान की शहर के मोहनपुर रोड स्थित एक निजी मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल में इलाज के दौरान जीभ काटे जाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है।
इस मामले में स्वास्थ्य विभाग ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। इस मामले में मरीज की हालत इतनी गंभीर हो गई कि उसे इलाज के लिए लोगों से चंदा मांगना पड़ा, जिसका वीडियो वायरल होने के बाद यह मामला उजागर हुआ।
पीड़ित मरीज के परिजनों का आरोप है कि यह घटना मोहनपुर रोड के एक निजी मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में हुई, लेकिन अस्पताल अब इससे पल्ला झाड़ रहा है। अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि वह मरीज उनके अस्पताल में आया ही नहीं था।
इस घटना ने जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलकर रख दी है। वहीं, स्वास्थ्य विभाग कार्रवाई की बातें तो करती है, लेकिन हकीकत यह है कि अभी तक उसने ऐसे किसी भी मामले कोई सख्त कार्रवाई नहीं की है।
हालांकि, खुद सिविल सर्जन डॉ एसके चौधरी भी मानते हैं कि डायलिसिस के मरीज की स्थिति गंभीर होने पर एंडोस्कोपी करने के दौरान जीभ कटने का खतरा रहता है। सिविल सर्जन के इस बयान से मरीज के परिजनों के आरोपों को बल मिलता है।
हालांकि, सिविल सर्जन ने इस मामले को गंभीर माना है और इसके लिए डॉक्टरों की लापरवाही की बात भी उन्होंने कही है। हालांकि, इस मामले और इससे पहले कई मामलों में स्वास्थ्य विभाग की भूमिका संदिग्ध ही नजर आयी है।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में कुल 105 नर्सिंग होम और अस्पताल ही पंजीकृत हैं। वहीं, उसके अलावा जितने भी ऐसे निजी स्वास्थ्य संस्थान हैं वह पूरी तरह से अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं और मरीजों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं।
अनुमंडल व प्रखंड मुख्यालय की बात तो छोड़िये अकेले जिला मुख्यालय में ऐसे सैकड़ों निजी अस्पताल हैं जो अवैध रूप से चल रहे हैं
। वहीं, स्वास्थ्य विभाग के अनुसार पूसा, बिथान, विद्यापतिनगर, मोहनपुर और मोरवा प्रखंड का एक भी निजी अस्पताल अथवा क्लिनिक विभाग से निबंधित नहीं है। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग के अनुसार पिछले वर्ष उसने ऐसे 20 स्वास्थ्य संस्थानों को नोटिस देने की बात कही थी।