फर्जी डॉक्टरों व उनके अस्पतालों पर कौन कसेगा शिकंजा। Samastipur News


आखिर कब तक ठगे जायेंगे लोग स्वास्थ्य विभाग खामोश क्यों?

                  (  झुन्नू बाबा )

समस्तीपुर ! फर्जी डॉक्टर एवं उनके अस्पतालों पर आखिर कौन शिकंजा कसेगा? इसकी जिम्मेदारी किसकी है? कब तक लोग ठगे जायेंगे? कब तक इन फर्जी अस्पतालों में बहु बेटियों के इज्जत से खिलवाड़ होता रहेगा?



 मुसरीघरारी थाना क्षेत्र में संचालित आरबीएस हेल्थ केयर सेंटर में हुई दुष्कर्म के प्रयास से सम्बंधित घटना ने एक बार फिर इस सवाल को खड़ा कर दिया है।


 कथित रूप से आरोपित इस फर्जी अस्पताल का संचालक संजय कुमार भी फर्जी डॉक्टर बताया जा रहा है। जानकार सूत्रों की मानें तो वह झोला छाप क्वेक है। जो अस्पताल की आड़ में कई तरह का अवैध धंधा कर रहा था।


उसका गोरखधंधा स्वास्थ्य विभाग की सह पर और जिला प्रशासन के अनदेखी के कारण ही फलफूल रहा था। यह तो बस उदाहरण मात्र है। स्वास्थ्य विभाग के सह पर इस तरह के सैकड़ों अस्पताल का जिले में संचालन किया जा रहा है।


 जहां बैठे फर्जी डॉक्टर मरीजों को लूटते ही नहीं उनके जान से खिलवाड़ भी कर रहे हैं। किसी बड़ी घटना के बाद विभाग खानापूर्ति के लिए जांच टीम तो गठित कर देती है, लेकिन उसी जांच टीम के रिपोर्ट पर विभाग के आला अधिकारी एक्शन नहीं लेते हैं। 


जिला प्रशासन को इससे कोई मतलब नहीं और आईएमए इसको लेकर आवाज उठाती नहीं है। जिसका नतीजा है कि कार्रवाई के आदेश के बावजूद जिला मुख्यालय के साथ साथ ताजपुर, कल्याणपुर, खानपुर, दलसिंहसराय, विभूतिपुर, रोसड़ा सहित लगभग पूरे जिले में काफी संख्या में खुलेआम फर्जी अस्पतालों का संचालन किया जा रहा है। 


करीब छह वर्ष पूर्व 2018 में किसी नर्सिंग होम संचालक द्वारा एक नवजात बच्चे के शव को कचरे के ढेर पर फेंक दिया गया था। जिसे आवारा कुत्ते नोंच- नोंच कर खा गए थे। इस घटना के बाद जमकर बवाल हुआ था। तत्कालीन डीएम चंद्रशेखर सिंह के आदेश पर कुछ अस्पतालों की जांच भी की गयी थी।


 जिसमें समस्तीपुर के तीन नर्सिंग होम क्रमशः आकाश हॉस्पीटल, तन्नु सेवा सदन एवं श्रीराम हेल्थ एंड चाइल्ड केयर के औटी को सील भी किया गया था। साथ ही कई अन्य निजी अस्पतालों की जांच भी की गयी थी। लेकिन यह मामला भी कुछ ही समय बाद फाइलों में जाकर दब गया।


 इसके बाद दलसिंहसराय, रोसड़ा एवं सदर अनुमंडल के कई नर्सिंग होम की जांच करायी गयी. लेकिन यह जांच उन्हीं नर्सिंग होम तक सिमट कर रह गयी, जहां की शिकायत मिली थी। आज भी जिला मुख्यालय में करीब आधा दर्जन से अधिक ऐसे अस्पतालों के संचालन किया जा रहा है,अधिक ऐसे अस्पतालों के संचालन किया जा रहा है, 


जिसे जिला प्रशासन के आदेश पर स्वास्थ्य विभाग ने सील कर दिया था। सील किये गए उन अस्पताल के संचालकों पर कानूनी कार्रवाई नहीं की गई, जिसका नतीजा है कि सील किये गए सभी अस्पतालों को नाम बदल कर फिर से चालू कर दिया गया है। 


आश्चर्य तो इस बात का है कि इन सभी फर्जी अस्पतालों का संचालन सरकारी अस्पताल में पदस्थापित डॉक्टर एवं स्वास्थ्य कर्मियों के मिलीभगत से किया जा रहा है। उनके बोर्ड पर सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों का नाम लिखा होता है। 


सदर अस्पताल के कुछ ऐसे चिकित्सक हैं जिनका नाम जिला मुख्यालय के करीब दो दर्जन से अधिक अस्पताल के बोर्ड पर लिखा हुआ है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग को इससे कोई लेना देना नहीं है। ड्यूटी छोड़कर वे निजी अस्पताल में प्रैक्टिस करते हैं, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। 


सूत्रों की माने तो फर्ज़ी अस्पताल एवं फर्ज़ी झोला छाप डॉक्टरों की ओर से सिविल सर्जन कार्यालय के कुछ बाबुओं की कृपा से ऐसे काले कारनामे किये जा रहे हैं, जिसमे इन बाबुओं को मोटी रकम फिक्स है!

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