कृषि विश्वविद्यालय में 17वें रिसर्च कॉउंसिल ( खरीफ ) की तीन दिवसीय बैठक आयोजित। Samastipur News

 ( झुन्नू बाबा )

समस्तीपुर !-डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा में सत्रहवें रिसर्च काउंसिल,(खरीफ) की तीन दिवसीय बैठक की शुरुआत 10 जुलाई को हुई। बैठक में विश्वविद्यालय की  दो सौ से अधिक अनुसंधान परियोजनाओं की समीक्षा की जायेगी। वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कुलपति डॉ पी एस पांडेय ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि



 इस तीन दिवसीय सत्र के दौरान बाह्य विशेषज्ञों के साथ मिलकर अनुसंधान परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा की जायेगी और उसमें सुधार के लिए जो जरूरी दिशा-निर्देश होंगे वो तय किए जायेंगे। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक किसानों के साथ मिलकर अनुसंधान कर रहे हैं।


 किसान जरुरी फीडबैक के साथ साथ डाटा इकट्ठा करने में भी सहायता कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय पास के कोठिया गांव को सोलर विलेज के एक माडल के रूप में विकसित कर रहा है। इसी तरह कई अन्य गांवों को भी विभिन्न माडलों के रूप में विकसित करने की प्रक्रिया शुरू किया गया है। 



उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में पिछले डेढ़ वर्ष में चौबीस प्रभेद और अठ्ठाइस तकनीक विकसित किये गये है, इन माडल गांवों में इन तकनीकों को भी किसानों के माध्यम से प्रदर्शित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय किसानों के साथ मिलकर बिहार के लिए लगभग अस्सी प्रतिशत बीज का उत्पादन कर रहा है जिसकी बिक्री राज्य सरकार को और आम किसानों को की जा रही है। 


उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को चाहिए कि वे जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए फसल उत्पादन की नई तकनीक विकसित करें साथ ही ऐसे प्रभेद विकसित करें जो जलवायु परिवर्तन के अनुकूल हो। उन्होंने कहा कि छोटे और सीमांत किसानों को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान किये जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि पूसा से ही कृषि अनुसंधान की शुरुआत भारत समेत कई पड़ोसी देशों में हुई थी और इसका योगदान विश्व स्तर पर सराहनीय रहा है।


 उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को ऐसी सोच रखनी चाहिए कि वे नोबल पुरस्कार कैसे प्राप्त करें।  उन्होंने कहा कि जब सपने देखेंगे तो उसे पूरा करने का प्रयास भी करेंगे। नवसारी कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ ए आर पाठक ने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों में अतुलनीय प्रतिभा है। डेढ़ वर्ष में बारह पेटेंट हासिल करना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि कुलपति डॉ पी एस पांडेय के नेतृत्व में डिजिटल एग्रीकल्चर के क्षेत्र में विश्वविद्यालय पूरे देश को नई राह दिखा रहा है। 


पूसा विश्वविद्यालय में चल रहे कई नवोन्मेषी कार्यों को गुजरात सहित कई अन्य राज्यों के विश्वविद्यालय में शुरू किया गया है। धारवाड़ कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ एम बी चेट्टी ने कहा कि वैज्ञानिकों को अपने डाटा के साथ पूरी ईमानदारी बरतनी चाहिए। अनुसंधान को सफल साबित करने के लिए डाटा में किसी भी तरह का हेर फेर एक क्राइम है और इससे सभी वैज्ञानिकों को बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय बहुत तेजी से आइआइआरएफ रैंकिंग में बत्तीसवें ‌स्थान से सातवें स्थान पर पहुंच गया है।


 यह इसकी प्रगति को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में हर छह महीने पर अनुसंधान परियोजनाओं के प्रगति की प्रख्यात बाह्य वैज्ञानिकों द्वारा समीक्षा की जाती है, यह अपने आप में अनूठा है और इसे अन्य विश्वविद्यालयों को भी अपनाना चाहिए। 


 देव संस्कृति विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और पूर्व सहायक महानिदेशक आईसीएआर डॉ एस डी शर्मा ने कहा कि पूसा का कृषि अनुसंधान में महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि दिल्ली में भी जब कृषि अनुसंधान परिषद स्थापित किया गया तो उस स्थान का नाम पूसा ही रखा गया। उन्होंने वैज्ञानिकों को इंटर डिसिप्लिनरी अनुसंधान करने के सुझाव दिए। 


कार्यक्रम की शुरुआत निदेशक अनुसंधान डॉ ए के सिंह ने की और विश्वविद्यालय में अनुसंधान को लेकर चल रहे कार्यों की विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय की ओर से प्रकाशित तीन पुस्तकों का भी विमोचन किया गया। कार्यक्रम तीन दिनों चलेगा। धन्यवाद ज्ञापन सह निदेशक डॉ एस के ठाकुर ने किया। 


कार्यक्रम के दौरान कुलसचिव डा मृत्युंजय कुमार निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ एम एस कुंडू , निदेशक बीज डा डी के राय, डीन बेसिक साइंस डॉ अमरेश चंद्रा, डीन इंजीनियरिंग डॉक्टर अम्बरीष कुमार, डीन पीजीसीए डॉ मयंक राय , डीन कम्युनिटी साइंस डॉ उषा सिंह , डॉ प्रणव कुमार, डॉ महेश कुमार, डॉ महेश कुमार सूचना पदाधिकारी डॉ कुमार राज्यवर्धन समेत विभिन्न वैज्ञानिक एवं शिक्षक उपस्थित रहे।

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