झुन्नू बाबा
समस्तीपुर ! डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र द्वारा किए गए शोध में पाया गया है कि जलवायु अनुकूल खेती की तकनीक अपनाने से किसानों की आमदनी में ढ़ाई गुना से अधिक वृद्धि होती है।
इसके अतिरिक्त मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। फसल पर अत्यधिक तापमान और बेमौसम बारिश तूफान का असर भी कम होता है। अनुसंधान के प्रमुख निष्कर्ष
जीरो टिलेज विधि गेहूं की जड़ों को मजबूत बनाने और तेज हवा एवं बारिश से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए जीरो टिलेज विधि से बुआई करना फायदेमंद है।
इस विधि में खाद की भी समुचित मात्रा का प्रयोग होता है। मौसम आधारित सिंचाई: मौसम की जानकारी के आधार पर सिंचाई करने से सिंचाई लागत में 60% तक की कमी देखी गई है।अतिरिक्त फसलें: मूंग की फसल को जलवायु अनुकूल तरीके से लगाने से किसानों को सालाना 30-32 हजार रुपये की अतिरिक्त आमदनी हुई है।
लीफ कलर चार्ट: पत्ते के रंग से मिलान कर खाद का छिड़काव करने से किसानों को लागत में 20-30% तक की कमी हुई है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ी है।अंतरवर्ती फसलें: धान की फसल के साथ अरहर का पौधा लगाने से धान की सुरक्षा हुई और मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा भी बढ़ी। इससे किसानों की आमदनी 30% तक बढ़ी और घरेलू दाल की जरूरत भी पूरी हो गई।
कुलपति डॉ. पीएस. पांडेय ने कहा कि जलवायु अनुकूल खेती के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर भी जानकारी इकट्ठा की गई है। उन्होंने बताया कि अधिक आय का 30% किसानों ने शिक्षा पर खर्च किया है।
जलवायु अनुकूल खेती के लाभ:
आमदनी में 275% तक वृद्धि: जलवायु अनुकूल खेती से किसानों की आमदनी में 275% तक की वृद्धि होती है। मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार: यह मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार करता है।फसलों का बेहतर उत्पादन: जलवायु अनुकूल खेती से फसलों का उत्पादन भी बेहतर होता है।
पानी की बचत: यह पानी की बचत में भी मदद करता है।किसानों से अपील:
कुलपति डॉ. पीएस. पांडेय ने सभी किसानों से आग्रह किया है कि वे जलवायु अनुकूल खेती की तकनीकों को अपनाकर अपनी आय और जीवन स्तर को बेहतर बनाएं।इस शोध के बारे में अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें:डॉ. रत्नेश कुमार, निदेशक, जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र, पूसा विश्वविद्यालय