रोसड़ा।
बुधवार को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम की अदालत में चर्चित पत्रकार विकास रंजन हत्याकांड मामले में फैसले की सुनवाई को लेकर कोर्ट परिसर की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता की गयी थी। एसडीपीओ सहरियार अख्तर के नेतृत्व में नगर इंस्पेक्टर सीताराम प्रसाद व भारी संख्या में पुलिस बलों की मौजूदगी कोर्ट परिसर के चप्पे-चप्पे पर थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट का बाहरी परिसर पुलिस छाबनी में तब्दील रहा।
मामले में कई चर्चित चेहरों के शामिल रहने को लेकर पुलिसिया सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त कर दी गयी थी। ताकि कोई परिंदा भी पर ना मार सके। सुनवाई खत्म होते हुए न्यायिक हिरासत में लिए गए आरोपियों को पूरी सुरक्षा व्यवस्था के बीच कैदी वैन से रवाना कर दिया गया।
बाहर खड़े लोग निर्णय जानने को रहे उत्साहित : सुनवाई के दौरान कोर्ट परिसर के बाहर खड़े लोग कोर्ट के निर्णय जानने को उत्साहित दिखे। कोर्ट से निकलने वाले अधिवक्ताओं को लोग घेर ले रहे थे। अधिवक्ताओं के द्वारा जानकारी दिए जाने के पश्चात ही लोग कोर्ट परिसर से हिले। न्यायालय के इस फैसले को हर किसी ने सराहनीय बताया। बेटा खोने वाले विकास के परिजनों में भी फैसले को लेकर खुशी देखी गई। पिता की आंखें छलक आयीं।
13 साल बाद मिला न्याय, बूढ़े पिता के आंखों से छलके आंसू
रोसड़ा । पत्रकार विकास रंजन हत्या मामले में 13 साल बाद जब बुधवार को न्यायालय का फैसला आया तो कोर्ट में मौजूद मृतक विकास रंजन के बूढ़े पिता फूलकांत चौधरी की आंखें छलक पड़ीं। रुंधे गले से उन्होंने बताया कि न्यायालय के फैसले का वे सम्मान करते हैं। न्याय पालिका पर पूरा भरोसा है। पर मेरी लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। इस मामले से जुड़े अन्य आरोपियों का मामला दो अलग-अलग न्यायालयों में विचाराधीन है। मुझे उस दिन का इंतजार है जब न्यायालय के द्वारा उन बचे आरोपियों को भी सजा सुनाई जाएगी। इसके बाद मेरी लड़ाई खत्म होगी। उन्होंने बताया कि 13 साल के इस लंबे अंतराल में मेरे मासूम पोता-पोती व विधवा बहू पर क्या बीता और उन्होंने किस तरह अपनी पीड़ा को अपने दिल में सहन किया, यह तो पीड़ा सहने वाला इंसान ही बता सकता है। जिस समय विकास की हत्या हुई थी उस समय विकास के पुत्र की उम्र 08 साल और पुत्री की उम्र मात्र 06 साल थी। दोनों बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया था।
ऐसी हालत में उन बच्चों और विधवा बहू को धैर्य धारण करने का ढाढ़स बंधाते हुए मैंने अपने बुढ़ापे में जिसर बुढ़ापे की लाठी से हमें अपने बुढ़ापे को काटने की उम्मीद थी, उसके लिए न्यायालय दौड़ते रहे।